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मिटी जा रही जाति किंतु, तुम भूल रहे हो भूलों में

- पं. रामचन्द्रराव मोरेश्वर करकरे

प्रस्तुति - श्रीमती अनीता करकरे

वरिष्ठ कलाकार, रंगोली प्रशिक्षक

 

' शब्द-साधक ' ब्लॉग श्रृंखला के इस अंक में प्रस्तुत है साहित्य-रत्न, क्रांतिवीर

स्व. पं. रामचन्द्रराव मोरेश्वर करकरे की रचना

संदर्भ : परतंत्र भारत में हिन्दुओं के जातिगत एकीकरण पर सन् 1926 में रचित एक दुर्लभ कविता

 
 

प्रियवर सज्जन उठो उठो तुम, हृदय नेत्र को सुलझाओ ।

हिन्दजाति की हीनावस्था, देख देख कुछ शरमाओ ।

कहाँ गया वह हिंदू प्यारा ? कहाँ गया वह प्यारा नाम ?

कहाँ उसी का वह वैभव था ? कहाँ उसी का यह विश्राम ?


अर्धशताब्दी पहले जो थी, हिंदू की संख्या पूरी ।

क्या अब भी तुम उसको पाते, उतनी की उतनी भारी ?

नहीं नहीं ! प्रिय मेरे बंधु, अब भी धोखा खाते हो ।

वह आधी से भी अब कम है, फिर तुम ही क्यों सोते हो ?


उठो उठो ! भारत के प्रेमी, हृदय धरो जाति का ध्यान ।

अपनी हिन्दजाति के द्वारा, गाओ भारत का तुम गान ।

देख देख ! उस अध: पतन को, हृदय नष्ट हो जाता है ।

सुमन हिंदू के फुलवाने का, उपाय क्या कुछ दिखता है ?


नहीं नहीं ! क्यों अवश्य दिखाता, करो हिंदू का पुनरुत्थान ।

जिससे भारत का वह प्यारा, सदा सुनावे सुख का गान ।

उस सुख को पाने ही के क्या, तुम भी ना अब अधिकारी ।

नहीं नहीं ! क्यों अवश्य ही हो, क्या तुम ना जीवनधारी ।


अतः स्वच्छ सर्वांगशिरोमणि, साधन दृष्टि आता है ।

जिसको करने ही से सारा दु:ख नष्ट हो जाता है ।

छोड़ हृदय के कुविचारों को, सुविचारों को अपनाओ ।

अछूत का कुछ मन ना धारो, एक एक से मिल जाओ ।


क्या शोषित अरू वंचित जाति, क्या उनमें ना जीवन प्राण ?

क्या ईश्वर के वह ना प्राणी, नहीं जानते वह सम्मान ।

एक ईश से तुम आये हो, उसी ईश से वे आये ।

उसी बिंदु को फिर जाना है, उसी ईश ही के जाये ।


गाओ गाओ ! प्रिय हिंदू तुम, एकता का सुन्दर गान ।

ऐक्य सर्वसृष्टि का दाता, ऐक्य है जीवन का दान ।

उसी ऐक्य के द्वारा तुम भी, अपनाओ सब ईश्वर प्राण ।

नाम तुम्हारा उज्ज्वल होगा, प्रसन्न होगा वह भगवान ।


अबलाओं की, विधवाओं की, कभी ‘आह’ ना सुन आवे ।

जर्जर होकर दु:खों से वे, कभी ‘श्राप’ भी ना देंवे ।

उसी समय हिंदू का होगा, इस जीवन से पुनरुत्थान ।

वही समय शुभसूचक होगा, जब हो जावे उसका मान ।


इन कर्मों के करने ही में, हो जावो जब पूर्ण उदार ।

फिर तो हिंदू श्रेष्ठ जाति का, उसी समय होगा उद्धार ।

विनय ‘राम’ की परिणित कर दो, विचार को अब कर्मों में ।

मिटी जा रही जाति किंतु, तुम भूल रहे हो भूलों में ।

 

प्रस्तुति : श्रीमती अनीता करकरे

वरिष्ठ कलाकार, रंगोली प्रशिक्षक, ग्वालियर

राष्ट्रीय समितियों में संगठनात्मक सक्रियता

एवं महिला सशक्तिकरण कार्य

अनेक शहरों में रंगोली से जुड़े विविध कीर्तिमान

लेखक ई-परिचय - https://www.shrikrishnasaral.com//profile/karkare

 

विशेष सूचना –

प्रस्तुत ब्लॉग श्रृंखला में प्रकाशित आलेखों अथवा रचनाओं में अभिव्यक्त विचार लेखक के निजी हैं । उसके लिए वे स्वयं उत्तरदायी हैं । संपादक और प्रकाशक उससे सहमत हों, यह आवश्यक नहीं है । लेखक किसी भी प्रकार के शैक्षणिक कदाचार के लिए पूरी तरह स्वयं जिम्मेदार हैं ।

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